14 तारीख से पितृपक्ष आरंभ

आत्मा और मनुष्य के बीच संबंध को जोड़ने वाला समय पितृपक्ष इस वर्ष 14 सितंबर से आरंभ हो रहा है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भाद्र शुक्ल पूर्णिमा तिथि को प्रपोष्ठी श्राद्ध के दिन ऋषि मुनियों का तर्पण किया जाता है। इस दिन परलोक में रहने वाली पितरों की आत्मा अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए विदा होती है और आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि के दिन परिवार के बीच पहुंच जाती है। प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पितरों की आत्मा धरती पर निवास करती है। यही वजह है कि इन 15 दिनों में मनुष्य को संयम पूर्वक रहना चाहिए। इन दिनों काम भाव को त्याग कर सदाचार का जीवन व्यतीत करना चाहिए। इससे पितरों को प्रसन्नता होती है।
तब भूख प्यास से तड़पती है आत्मा
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितर लोक को गई आत्म पितृ पक्ष में जब लौटकर आती है तो वह अपने परिवार द्वारा दिए गए पिंड, अन्न और जल को ग्रहण करके तृप्त होती है। इसी से पितरों की आत्मा को बल मिलता और वह अपने परिवार के लोगों का कल्याण कर पाते हैं। जिन्हें पितृ पक्ष में अन्न जल प्राप्त नहीं होता वह भूख, प्यास से व्याकुल होकर अमावस्या के दिन लौट जाते हैं। पितरों का निराश होकर लौटना परिवार में निराशा और कष्ट को बढ़ता है।
पितरों के नाम से इन 5 को भोजन दें 
पुराण के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों के नाम से तर्पण करते हुए हर दिन पितरों को जल देना चाहिए। जिस तिथि को पिता की मृत्यु हुई हो उस दिन पितरों के नाम से श्राद्ध करना चाहिए और पूर्वजों की पूजा करके ब्रह्मणों को भोजन कराना चाहिए। पितरों के लिए बने भोजन को गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ को भी देना चाहिए। इससे पितर जहां जिस रूप में होते हैं उन्हें उनका अंश मिल जाता है।
पितृपक्ष में गज छाया योग, ऐसी आत्माओं के लिए श्राद्ध
27 अगस्त को जिन लोगों की मृत्यु तिथि का पता नहीं हो, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो। शस्त्र और विष द्वार जिनके प्राण चले गए हों उन सभी का श्राद्ध इस दिन किया जाएगा। इस दिन ही गज छाया योग बन रहा है। इस योग में अज्ञात तिथियों में मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करना शुभ माना गया है।