मध्यप्रदेश के इंदौर शहर से चालीस किमी दूर देपालपुर विकासखंड के गिरोटा गांव के सरकारी हाईस्कूल का चपरासी पिछले 23 वर्षों से बच्चों को संस्कृत सिखा रहा है। वह संस्कृत का जानकार है और अपना ज्ञान बच्चों में भी बांट रहा है। उसको इस काम के लिए कोई अतिरिक्त वेतन नहीं मिलता और न ही वह शिक्षक पद पर है। इसके बावजूद वह स्कूल में सभी बच्चों को संस्कृत पढ़ाने और सिखाने का काम बखूबी कर रहा है। उनका नाम वासुदेव पांचाल है। वह अब 53 वर्ष के हो गए हैं।
पहले साफ-सफाई, पानी भरते हैं, फिर पढ़ाते हैं : वासुदेव पांचाल स्कूल आने के बाद पहले झाड़ू लगाते हैं, फिर फर्श और फर्नीचर की साफ-सफाई करते हैं। इसके बाद पानी भरते हैं। इसके अलावा वह स्कूल की दूसरे काम भी निपटाते हैं। इन सबसे खाली होने के बाद वह बच्चों को संस्कृत पढ़ाने के लिए क्लासरूम में आते हैं। खास बात यह है कि वह अपना हर काम पूरे लगन और मेहनत से करते हैं।
अपनी इच्छा से कर रहे शिक्षण कार्य : वासुदेव स्वयं इसी स्कूल से शिक्षा प्राप्त किए हैं। वह अपने स्वयं के अध्ययन से संस्कृत को सीखे और अब बच्चों को सिखा रहे हैं। उनकों यहां संस्कृत पढ़ाने के लिए रखा नहीं गया है। उन्होंने स्वयं ऐसा करने की इच्छा जताई। उनकी पहल पर उनको पढ़ाने की अनुमति मिल गई। वह रोजाना दो क्लास लेते हैं। उनके सरल स्वभाव और विषय का गहरा ज्ञान होने की वजह से वह बच्चों के अति प्रिय हैं। बच्चे उनकी सराहना करते हैं और उनकी क्लास में कभी अनुपस्थित नहीं होते हैं।
175 विद्यार्थी के लिए तीन शिक्षक : स्कूल में कुल 175 छात्र हैं, जबकि उनको पढ़ाने के लिए केवल तीन शिक्षक हैं। संस्कृत पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है। शहर से काफी दूर और बाहर होने की वजह से कोई भी शिक्षक इस स्कूल में नहीं आना चाहता है। इससे बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की भी कमी है। प्रधानाचार्य समेत कुल तीन शिक्षक वहां नियुक्त हैं।
पहले सरकारी स्कूल में सफाई, फिर बच्चों को संस्कृत पढ़ाता है यह चपरासी, 23 साल से कर रहा ऐसा काम