श्राद्ध के बारे में अक्सर ये कहा और सुना जाता है कि केवल पुत्र ही श्राद्ध कर सकता है। वहीं पुत्र न हो तो प्रपौत्र या फिर पौत्र श्राद्ध कर सकता है। लेकिन महिलाओं के श्राद्ध करने को लेकर तमाम जगहों पर मनाही की बात की जाती है। जबकि वाल्मिकी रामायण की मानें तो स्त्रियां भी श्राद्ध कर सकती हैं। इसका प्रमाण भी रामायण के एक प्रसंग में मिलता है जब माता सीता जी ने स्वयं ही अपने ससुर श्री दशरथजी महाराज का श्राद्ध किया था। इसके अलावा गरुण पुराण में भी स्त्रियों द्वारा श्राद्ध करने की बात कही गई है। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं…
मां सीता ने स्वयं किया दशरथजी महाराज का श्राद्ध
वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के दौरान जब श्रीराम भगवान, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे तो श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने के लिए नगर की ओर गए। उसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है। इसी के साथ माता सीता को दशरथ जी महाराज की आत्मा के दर्शन हुए, जो उनसे पिंड दान के लिए कह रही थी। इसके बाद माता सीता ने फाल्गू नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फाल्गू नदी के किनारे श्री दशरथ जी महाराज का पिंडदान कर दिया। इससे उनकी प्रसन्न होकर सीता जी को आर्शीवाद देकर चली गई।
गरुड़ पुराण में मिलता है प्रमाण
गरुड़ पुराण में श्लोक संख्या 11, 12, 13 और 14 में इस बात का जिक्र किया गया है कि कौन-कौन श्राद्ध कर सकता है। 'पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदन:। शिष्यों वा ब्राह्म्ण: सपिण्डो वा समाचरेत।। ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृ: पुत्रश्च: पौत्रके। श्राध्यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खग:।। इस श्लोक के मुताबिक ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एक मात्र पुत्री भी शामिल है। यदि पत्नी जीवित न हो तो सगा भाई या भतीजा, भांजा, नाती, पोता भी श्राद्ध कर सकते हैं। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई रिश्तेदार या फिर कुलपुरोहित मृतक का श्राद्ध
वाल्मिकी रामायण में मिलता है प्रमाण पुत्रियां भी कर सकती हैं श्राद्ध