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छात्र जीवन में ही वीडी सावरकर ने साथियों संग किया था मस्जिद पर हमला
विनायक दामोदर सावरकर ने छात्र जीवन में एक बार मस्जिद तोड़ने की 'गुप्त साजिश' रची थी। यहां तक कि उन्होंने कुछ साथियों संग मिलकर मस्जिद पर हमला भी किया था। ऐसा इसलिए, क्योंकि वे तब हिंदुओं के रुख से बेहद खफा थे, जिसके आजिज आकर उन्होंने बाद में मस्जिद पर हमला भी बोला था और फरार भी हो गए थे। इन बातों का जिक्र सावरकर के जीवन पर लिखी गई विक्रम संपत की किताब 'सावरकर' में मिलता है।
पेंग्विन रैंडम हाऊस इंडिया द्वारा प्रकाशित इस किताब के मुताबिक यह वाकया 1890 के दौर का है। महाराष्ट्र तब धुव्रीकरण की राजनीति में बुरी तरह झुलस रहा था। मुंबई प्रेसिडेंसी में जगह-जगह दंगे भड़क रहे थे। कभी गणपति कार्यक्रम के दौरान माहौल खराब होता, तो किसी मौके पर मांस और अंडा हिंसा की वजह बनते।
6 फरवरी 1894 को नासिक के येवला स्थित मस्जिद में कथित तौर पर सुअर का कटा सिर फेंक दिया गया था। कुछ वक्त बाद खबर आई कि सुअर के मांस वाली घटना के जवाब में मंदिर में गोहत्या कर दी गई। इलाके में इसके बाद तनाव पनपा और सुरक्षा मुस्तैद की गई। खबर आगे मस्जिद और मंदिर फूंकने की साजिश रचे जाने तक की आईं।
इसी बीच, हिंसा में चार लोगों की जान भी चली गई थी। किताब में बताया गया कि उस दौरान होने दोनों समुदायों के बीच हिंसाओं के पीछे एक और कारण भी था। वह था- मस्जिदों के बाहर हिंदुओं के कार्यक्रमों के दौरान गाने बजाना। सावरकर दोस्तों के साथ उस दौरान 'केसरी', 'पुणे वैभव' और अन्य प्रमुख अखबार पढ़ते थे, जिसमें उन्हें धुव्रीकरण के कारण होने वाली हिंसा की खबरें मिल रही थीं। हर बार उन्हें हिंदुओं पर ही हमलों की खबर मिलती थी और इसी बात पर वे अपने समुदाय से बेहद नाराज थे। साथियों संग उन्हें हैरानी होती थी आखिर इतना सब होने पर हिंदू जवाब क्यों नहीं दे रहे?