एक ओर जहां वायुसेना में शामिल हो रहे अत्याधुनिक लड़ाकू विमान, हेलिकॉप्टर और मिसाइल प्रणालियां भारतीय वायुसेना को दिनों-दिन ताकतवर बना रही हैं, वहीं पिछले कुछ समय में भारतीय नौसेना में शामिल हुए अत्याधुनिक जंगी जहाज और पनडुब्बियां भी भारत की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा में सक्षम हैं। वर्ष 2008 के मुंबई हमले के बाद भारत के पश्चिमी समुद्री तट की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार ने कई सुरक्षात्मक कदम उठाए हैं, जिनमें से समुद्री सीमा में अपतटीय गश्ती पोतों की तैनाती भी प्रमुख है। पिछले कुछ समय में अंडमान-निकोबार द्वीप से लेकर म्यांमा की सीमाओं तक चीन ने अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाई हैं। इस वजह से भी हिंद महासागर में सुरक्षा बढ़ाना भारत के लिए अनिवार्य हो गया है। यही कारण है कि देश की समुद्री सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए रक्षा मंत्रालय नौसेना को अत्याधुनिक समुद्री जहाजों, पनडुब्बियों और नावों से लैस करने में जुटा है।
चीन 'वन बेल्ट वन रोड' योजना के तहत हिंद महासागर में गतिविधियां बढ़ा रहा है। चीन के इस बढ़ते दबदबे को लेकर भारत सहित दुनिया के कई देशों में चिंता होना स्वाभाविक है। इस योजना के तहत चीन एशिया और अफ्रीका के कई देशों में अपनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ा रहा है। इसी के चलते पिछले साल भारत और फ्रांस के बीच 'मैरीटाइम अवेयरनेस' समझौता भी हुआ था, जिसके तहत दोनों देश नौसैनिक अड्डों पर युद्धपोत रख सकेंगे। फ्रांस के साथ यह समझौता इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि उसके पास ताकतवर समुद्री सेना के अलावा परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियां भी हैं।
पिछले दिनों गश्ती पोत 'वराह' को तटरक्षक बल में शामिल किया गया था। अनठानवे मीटर लंबाई वाले गश्ती पोत वराह का डिजाइन और निर्माण देश में ही किया गया है, जो तलाश, बचाव कार्य और समुद्री गश्ती संचालन के लिए दो इंजन वाले हेलिकॉप्टर और तीव्र गति की चार नौकाओं को ले जाने में सक्षम है। इसके अलावा इसमें समुद्र में तेल फैलने जैसी घटनाओं से बचाव के लिए प्रदूषण नियंत्रक उपकरण भी लगे हैं और यह चिकित्सा सुविधाओं, अत्याधुनिक नौवहन, मशीनरी, सेंसर और आधुनिक निगरानी प्रणालियों से लैस है। आइसीजीएस 'वराह' पर 30 एमएम और 12.7 एमएम की बंदूकों से लैस है। इस पोत में एकीकृत निगरानी प्रणाली, स्वचालित ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली, उच्च क्षमता की अग्निशमन प्रणाली, स्वदेश निर्मित एकीकृत पोत प्रबंधन प्रणाली लगी है। 'वराह' तटरक्षक बल के सात समुद्री गश्ती पोत की शृंखला में चौथा है।
पहले जहां युद्धपोतों के निर्माण क्षेत्र में सरकारी शिपयार्डों का ही एकाधिकार था और उन पर इनके निर्माण के लिए भारी दबाव भी रहता था, वहीं पिछले कुछ वर्षों से मेक इन इंडिया नीति के तहत निजी क्षेत्र द्वारा भी इस क्षमता को हासिल कर लेने के बाद इन जहाज कारखानों पर युद्धपोतों को बनाने का दबाव कम हुआ है और देश को अत्याधुनिक युद्धपोत भी समय से मिलने लगे हैं। वर्ष 2014 में रक्षा मंत्रालय ने एलएंडटी शिपयार्ड लिमिटेड को सात तटीय पोतों के डिजाइन बनाने से लेकर निर्माण तक की जिम्मेदारी दी थी, जिनमें से चार को निर्धारित समय से पहले ही तैयार कर लिया गया और पांचवें तटीय गश्ती पोत 'वरद' को भी अगले कुछ हफ्तों में समुद्री परीक्षण के लिए तैयार कर लिए जाने की संभावना है।
तटरक्षक बल में शामिल हो चुके अन्य तीन युद्धपोतों में आईसीजीएस विक्रम को सिर्फ पच्चीस महीने के भीतर तैयार कर पिछले वर्ष तटरक्षक बल को सौंप दिया गया था। यह पांच हजार समुद्री मील का सफर तय कर सकता है और इस पर हेलिकॉप्टर भी तैनात किए जा सकते हैं। इसके जरिए भारत के द्वीपीय भूभागों की चौकसी के अलावा समुद्री डाकुओं पर भी नजर रखी जा सकती है। इसी तरह आइसीजीएस विजय नामक पोत को भी पिछले साल अप्रैल में नौसेना को सौंप दिया गया था।
पिछले साल ही गश्ती पोत 'आइसीजीएस वीरा' को भी तटरक्षक बेड़े में शामिल किया गया था। इस जहाज को एक जुड़वां इंजन वाले हेलिकॉप्टर और चार उच्च गति वाली नौकाओं को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें बोर्डिंग ऑपरेशन, खोज, बचाव, कानून प्रवर्तन और समुद्री गश्त के लिए दो नावें भी शामिल हैं। ऐसे ही पोतों में आइसीजीएस शौर्य और आइसीजीएस समर्थ भी शामिल हैं। इस समय जितने भी गश्ती पोत बनाए जा रहे हैं, वे सभी स्वदेशी डिजाइन वाले अत्याधुनिक संचार तंत्र, अरपा रडार, चुंबकीय कंपास, स्वचालन की सुविधा, इलेक्ट्रिक चार्ट डिस्प्ले, इको साउंडर इत्यादि सुविधाओं से लैस होंगे।
जहां तक हाल में मुंबई के समुद्र तटों की रक्षा के लिए नौसेना में शामिल हुई पनडुब्बी आइएनएस खंडेरी की बात है तो यह नौसेना की दूसरी सबसे अत्याधुनिक पनडुब्बी है। प्रोजेक्ट-75 के तहत देश के भीतर बनी स्कॉर्पियन श्रेणी की पहली पनडुब्बी आइएनएस कलवरी थी और आइएनएस खंडेरी इसी श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी है। मुंबई के मझगांव डॉक में बनी खंडेरी का वर्ष 2017 में जलावतरण हुआ था, सागर की गहराइयों में दो साल तक परीक्षण करने के बाद देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिए खंडेरी को तैनात किया गया है।
यह किसी भी युद्धपोत को ध्वस्त करने की अद्भुत क्षमता रखती है। अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित स्वदेशी पनडुब्बी खंडेरी को भारतीय समुद्री सीमा की सुरक्षा करने में पूरी तरह से सक्षम इसीलिए माना जा रहा है कि यह मुंबई के तट पर रहकर ही तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित दुश्मन के जहाज को नष्ट करने की क्षमता रखती है और इसीलिए इस पनडुब्बी के नौसेना के शामिल होने से नौसेना की ताकत पहले के मुकाबले काफी बढ़ गई है। जंग के दौरान पानी में दुश्मन पर सबसे पहले प्रहार करने वाली कलवरी श्रेणी की यह दूसरी डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है।
यह एक बार में पैंतालीस दिनों तक बारह हजार किलोमीटर का सफर तय करने और समुद्र में करीब साढ़े तीन सौ मीटर की गहराई में जाकर गोता लगाने में सक्षम है। यह समुद्र के अंदर करीब 20 समुद्री मील और पानी के ऊपर ग्यारह समुद्री मील की रफ्तार से चलने में सक्षम है। विशेष प्रकार के स्टील से बनी इस पनडुब्बी में उच्च तन्यता शक्ति है, जो अधिक गहराई में जाकर काम करने की क्षमता रखती है। खंडेरी विभिन्न प्रकार के अभियानों जैसे सतह-रोधी युद्धक क्षमता, पनडुब्बी-रोधी युद्धक क्षमता, खुफिया जानकारी जुटाना, क्षेत्र की निगरानी करने जैसे कामों में पूरी तरह सक्षम है।
समुद्र में बढ़ती भारत की ताकत